Saturday 9 September 2017

नहीं गाती ये फ़िज़ा अब बीते कल का तराना...

 चुप सी हो गयी है हर सुबह,
मायूसी की चादर लपेट, रात ले आती है हर शाम...
मन की बातें चेहरे पर अब झलकती नहीं..
हाल-ए-दिल किसी से कहती नहीं..
कोरे कागज़ में ढूंढ़ती है ये ठिकाना...
नहीं गाती ये फ़िज़ा अब बीते कल का तराना...

खुद को पीछे छोड़, आने वाले कल के,
आइने में देखने का शौक़...
फ़ीकी हंसी और झूठी मुस्कान को देख..
अब तो वक़्त भी कहता है...
हज़ारो खुशियां कही और से ले आना..
नहीं गाती ये फ़िज़ा अब बीते कल का तराना...

सिर्फ़ यादें अब सुकून दे जाती है.. 
वरना, आज की कहानी; 
हर रोज़ नया कुछ सीखा जाती है... 
ज़िंदगी के हर पन्नों पर;
लगता है अब सब-कुछ बेगाना.. 
नहीं गाती ये फ़िज़ा अब बीते कल का तराना...

 




 


2 comments:

  1. बहुत खूब तान्या जी ! जिन्दगी की जद्दो-जहद को बारीकी से कलम-ए-कागज किया है |

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  2. बहुत खूब तान्या जी ! जिन्दगी की जद्दो-जहद को बारीकी से कलम-ए-कागज किया है |

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