एक नयी कहानी, एक नयी उम्मीद,
पर वही पुरानी मेरी मंज़िल की लकीर...
निगाहों की ये चुभन,
कुछ करने का ये जुनून...
मैं कमज़ोर हूं ये कभी कहने नहीं देती,
है कुछ यूं जीतते रहने की चाह,
क्यूंकि अब है खाव्हिशें बेहिसाब...
हर पल में मुस्कुराता है मेरा चेहरा,
अब नहीं रहता लम्हों की ख़ामोशी का पहरा...
जो बातें मन में है, वही ज़ुबा पर आती है,
बिन कहे लोगों को बहुत कुछ कह जाती है...
कभी न पीछे मुड़कर देखना,
यही बात रोज़ खुद हो कहना...
नहीं है हौसलें कोई पर लगाम,
क्यूंकि अब है खाव्हिशें बेहिसाब...
पलकों पर बैठे हज़ारों सपनें,
हर दफ़ा मुझसे लगते है कहने...
दिन पर दिन तू मेरी ज़ंजीरो को मज़बूत बना,
बिना रुके हर पल में कुछ अनोखा कर मुझे और सजा...
मैं समझता हूं तेरे अरमान,
मत कर इस मतलबी दुनिया की परवाह...
मिलेगा तुझे मेरी दुनिया में पनाह,
क्यूंकि अब है खाव्हिशें बेहिसाब...