Wednesday 17 October 2018

आदत है..जरुरत है

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यादों के झरोखों से निकल आता है,
मेरी बेतुकी बातों में समा जाता है.. 
जब भी तुझे पिरोहने बैठूं,
रेत की तरह फिसल जाता है.. 

खबरों के खेल में तू हर बार जीत जाता है,
जिरह की चाल में उलझा, हर बात जान लेता है.. 
करती हूं हर बार गुस्ताखियां,
पर कभी न निकाली तुने मुझमें कोई भी खामियां.. 

बातों से किया तुझे हताश, 
दिए जख्म, पर कभी न किया इलाज.. 
पूछा मैंने, "बुरी तो नहीं लगी कोई बात"
हल्की-सी मुस्कान के साथ,तुमने दिया जवाब-
"आदत है..जरुरत है इनकी,  
अच्छी लगती है तुम्हारी हर बात.. 
अधूरी न रह जाए ये दास्तां, बस एक ही है अरदास.. 
हो जाए मुकम्मल ये मोहब्बत और तुम्हारा साथ.."

Wednesday 26 September 2018

वनस्थली- एक अलग-सी दुनिया...



मन में कोई चाह हो तो दबा कर नहीं रखते
भावनायेहमारे सच्चे मन की वो आवाज़ होती हैं,
 जिसे हर इन्सान कागज़ के टुकड़ो पर नहीं उतार सकता... 
और यही भावनाये कभी-कभी अनुभव का रूप ले लेती हैं ...
जिस पल में जो मिल जाये वह हमारे लिए काफी होता हैं, अपने सपनों को नयी उड़ान देने के लिए और ख्वाहिशों के परिंदों को पर देने के लिए... कुछ यादों.. कुछ बातों को पीछे छोड़, एक नयी सफ़र एक नयी मंजिल को पाने के लिए अपना नया कारवां निकल पड़ा... मन का हो तो अच्छा.. न हो तो और भी अच्छा.. यहां से एक अलग और अंजान सफर का आगाज हुआ.. जब पहली बार अपनी इस दुनिया में कदम रखा था, मुझे सब कुछ बिखरा हुआ सा लगा.. न कोई उम्मीद, न कोई चाह.. बस लगा ये मेरी दुनिया नहीं हो सकती है, तीन साल खत्म हो और मैं चली जाऊं यहां से.. पर आज ये दुनिया मुझे मेरी यादों की खिड़कियों से बहुत दूर दिखाई देती है..  जिंदगी के कुछ बीते पन्नों को पलटूं तो यहां की आबो-हवा आज खुशनुमा लगती हैं... ये दुनिया उतनी अपनी न थी, जितनी आज लगती हैं... ये अनचाहा सफर.. ये पराई दुनिया.. मेरी जिंदगी का अटूट हिस्सा है.. अब हर बात में इसकी याद आती है..


घर से दूर जिन्दगी ने बहुत कुछ सिखाया... गिर के उठना और खुद को संभालना भी आ गया..
जब भी शाम कमरे का दरवाजा खोलती हूं, आस-पास देखती हूं तो घर की बहुत याद आती हैं... वो माँ की बातें..वो लाड..वो प्यार..वो डांट बहुत याद आता हैं... पर वो बचपन कही खो सा गया और हम कब बड़े हो गए पता ही नहीं चला... किसने कहा की बड़े होने के लिए वजह चाहिए..? ये तो समय हैं जो मुझे आज हर बात पर बड़े होने का एहसास दिला जाता हैं.. पहले चीजों को जगह पर रखना कितना भरी लगता था, आज वही रोज का काम बन गया हैं.. समय-समय पर माँ का कहना इतनी देर हो गयी अभी तक खाया भी नहीं, अब इसका भी ख्याल कौन रखे...?
आज जब पीछे मुड़कर देखती हूं तो अपनी उस परछाई को धुंधली पाती हूं... लगता हैं कल ही की तो बात हैं जब पापा हर रात की तरह मुझे अपने पास बैठा जिन्दगी का नया पाठ पढ़ाते थे, मेरे सिर पर हाथ फेर चहरे पर मुस्कराहट के साथ कहते थे.. बहुत देर हो गयी जा कर सो जा
आज समय का पता ही नहीं चलता पर हां, उस स्पर्श को हमेशा महसूस करती हूं.. और जीवन में कुछ करना हैं तो हर कदम पर करुँगी.. क्योंकि वो मेरे हौसलों की उड़ान, मेरे जज्बों की पहचान हैं...

मेरा एक समय पर वहां होना ही मुझे अपने आप में बहुत बड़ी बात मालूम होती हैं.. उस जगह ने मुझे मेरे पापा के प्यार और माँ की ममता से अवगत कराया हैं.. अपने पढ़ाई के साथ-साथ मेरे मन में मेरे सभी शिक्षको के लिए बहुत इज्ज़त हैं.. उनका स्थान मेरे ज़ीवन में सर्वोच्च हैं.. मुझे हर कदम पर उनका साथ मिला, उनके सहयोग और मार्गदर्शन के बिना तो कुछ संभव ही नहीं.. एक अंकुरित बीज को बढ़ने के लिए सही देख रेख की बहुत आवश्यकता होती है, मेरी वही आवश्यकता मेरे शिक्षको ने पूरी की... 
मैं कभी नहीं भूल सकती अपनी इस दुनिया को जिसने मुझे सच में परिवार के मायने सिखाये हैं.. याद करती हूंसे हर वक़्त जब यह सोचती हूं... मैं बड़ी उस जगह हुई थी, जहां मेरा अपना परिवार था ही नहीं.. पर कुछ अंजान रिश्ते मेरे कब अपने बन गए पता ही नहीं चला.. आज मैं इतनी बड़ी हो गयी हूं कि अपनी इस दुनिया को चमक भरी निगाहों से देखती हूं.. उल्लास से अपनाती हूँ यंहा के लोंगो को.... चहरे पर सिकन होने के बाद भी मुस्कुराती हूं.. दिल में कसक हैं पर आज उसे मिटाने की हिम्मत भी रखती हूं..
कैसे भूल सकती हूं इस जगह को जिसने मेरा हाथ तब थामा था, जब मेरे अपने मुझे यंहा छोड़ गए थे.. मेरा हाथ थाम इसने मुझे इस काबिल बनाया कि, मुझे अपनी जिंदगी में कुछ कर गुजरने का हौसला जरुर हैं... आज मैं लोगों को बहुत गर्व और खुशी से बताती हूं अपनी इस दुनिया के बारे में.. जब भी देखते और सुनते है, मेरी इस दुनिया के बारे में तो यही कहते है.. बहुत खूबसूरत हैं तुम्हारी दुनिया और बहुत दिलचस्प हैं वहां की बातें...



PIC CREDIT- ANSHI VERMA 

Saturday 15 September 2018

हर रोज तुझे मैं लिखती हूं..



हूं खुली किताब जैसी, हर पन्ना सब पढ़ जाते है..
तेरे नाम के पन्ने को कोई पढ़े, उससे पहले पलट देती हूं..
बात एक समय की नहीं है, हर रोज तुझे मैं लिखती हूं..

मुद्दतों के बाद भी, उतनी ही शिद्दत है मेरी दुआओं में..
आखें नम नहीं होती, बस गला भर आता है..
सिर झुकाते ही, तेरे नाम की सदा गूंज जाती है..

तेरी एक-एक बात से मोहब्बत जैसा कुछ है..
यूं ही नहीं हर शब्द मेरे जहम में हर वक्त रहते है..
मोहब्बत जैसा सच में कुछ है,
पर ये मोहब्बत नहीं, उससे भी ऊपर है..

     

Friday 31 August 2018

बंदिशों से आगे..


गहराते जख्मों की उम्र ही क्या है ?
साथ चल रहे, वक्त का मलहम लगाना बाकी है..
कई पुराने किस्से मिटते जाते है,
मिटे स्याही को अपना अंश बनाना बाकी है..
न जाने चुप क्यों हो जाती है ये जबां,
उन खामोशी में अनकहे अफसाने और भी है..

शाम हसीन है, हिस्सा हूं उस महफिल का,
कई जाम को पीना अभी बाकी है..
खुद को काबिल बनाने की लत में,
तलब के जश्न को मनाना अभी बाकी है..
चुभता है इरादों के ठहराव हर बार,  
ख्वाहिशों के सफर में मोड़ और भी है..

एक मामूली तस्वीर है, अकश् आईना है,
फिके रंग उभरना अभी बाकी है..
पाक मोहब्बत की फलक से,
खुशियां उझालना अभी बाकी है..   
यूं ही नहीं दिल में उठी कसक कहती है,
बंदिशों से आगे, एक जहां और भी है..



Saturday 25 August 2018

वक्त लगता है...




साधु के भेष में वो दरिंदा बन, उसकी इज़्जत तार-तार कर जाए..
सच्चाई की वीणा बजा वो, झूठ का परचम लहराएं..
हजारों बार कुरेदा जाता है, उसके जख्मों को..
वो चिखती-चिल्लाती है, अदंर से बार-बार रोती है..

दबा दी जाती है उसकी आवाज, क्योंकि सबसे ऊपर है समाज..
इंसाफ के इंतजार में जख्म नहीं भरता, हर बार नया चोट है उभरता..
लहु-लुहान हुई आत्मा, सहम कर रह जाती है..
सुखे हुए आंखों के आंसू, कितना कुछ बोल जाती है..

सब कहते है वक्त नहीं लगेगा, सब ठीक हो जाएगा..
जरा समझना इस बात को ;
वक्त-वक्त की बात में उसे हर वक्त जीना-मरना पड़ता है..
कभी रखकर देखना खुद को उसकी जगह पर ;
नासूर भी कुछ होता है, शायद इसका अंदाजा लग जाए...







Saturday 11 August 2018

देखा है उन आंखों को चमकते हुए...



टूट कर बिखर गए सपने तो उनका क्या कसूर,
खनक की टीस अश्कों के साथ बह जाती है..

देखा है उन आंखों को चमकते हुए,
जिससे आंसूओं की लकीर खींच जाती है..
लबों से बय़ा कर पाना शायद मुश्किल हो,
उसकी सिसकियां हर सांस का बोझ उठाती है..

मिट्टी का घर बना खिलखिला उठते है,
बचपन का हर रंग उस आशियाने में भरते है..
नंगे पांव में हुए छालो की फिक्र नहीं,
दुनिया की सैर टायर के झूले पर किया करते है,

रोज ख्वाहिशों का जनाज़ा निकलता है,
न जाने कितने अरमान दफ़न हो जाते है..
खुल कर जिंदगी को जीने से पहले ही, 
पेट की आग में बचपन झुलस जाता है..






Saturday 4 August 2018

कुछ अधूरा-सा अब पूरा होने को है...




शाख से टूटा पत्ता स्याही का मोहताज है,
अधूरे अंतरे को मुखड़े की तलाश है.. 
बेशक कई सपने पनपते है इन आंखों में,
ख्वाहिशों का जिक्र रहता है अनकही बातों में.. 
कुछ अधूरा-सा अब पूरा होने को है,
कुछ खामोशी अब गुनगुनाने को है.. 

आम किस्से है सारे इस ज़माने के,
    उस जहां के अलग ही अफ़साने है..    
फलक भी जरा-सा नज़र आता है उसके आगे,
यहां तो पावं रखने के लिए भी जमीन कम है.. 
कुछ अधूरा-सा अब पूरा होने को है,
कुछ खामोशी अब गुनगुनाने को है.. 

 बंदिशे अब दगा दे जाती है,
उलझनों का रिश्ता अब अपना-सा लगता है.. 
मुकम्मल होने को है किसी का साथ,
कश्मकश में न जाने क्यों है मेरे जज़्बात.. 
कुछ अधूरा-सा अब पूरा होने को है,
कुछ खामोशी अब गुनगुनाने को है.. 

Thursday 26 July 2018

तुम्हारी-मेरी बातें...



आज तुम्हें देखे काफी वक्त हो गया.. आजकल बारिश हो रही, आसमान में काले बादल दिखते है.. जिसकी वजह से बहुत दिनों से तुम दिख ही नहीं रही.. अब क्या करुं ये मेरी आदत हो गई है.. कही भी रहूं बिना तुम्हें एक झलक देखे मन ही नहीं मानता.. सब पूछते है इतनी रात को छत पर क्या करने जा रही हो ? कितनी भी रात हो जाए तुम्हें देखे बिना.. तुमसे बातें किये बिना वो दिन अधूरा-सा लगता है.. सबको लगता है ये मेरी आदत है रात को सोने से पहले छत पर टहलना, हां आदत जरुर है..पर तुमसे मिलने की.. तुम्हें देखने की.. तुमसे बातें करने की.. अब लोग शायद पागल समझे.. पर ये तुम्हारी और मेरी बातें, फिर वो कुछ भी समझे क्या फर्क पड़ता है.. आज भी जब वो गाना गुनगुनाती हूं जो तुम्हारे पसंदीदा गानों में से एक हुआ करता था.. तेरे बिना जिंदगी से कोई सिकवा तो नहीं... लगता है तुम यहीं पास ही तो हो, और कहोगी स्पीकर में जरा बजाना इसको.. बातों पर धुल की परत जम गई है, पर यादें ताउम्र ताजा रहेंगी.. तुम्हें हमसब को छोड़ कर गए लम्बा अरसा होने जा रहा है.. पर आज भी मैं तुम्हें अपने करीब ही महसूस करती हूं.. कहा था ना मैनें, तुम्हारी कमी कोई पूरी नहीं कर सकता..और ना वो जगह मैं किसी को दूंगी.. आज भी कई बातें मन में ही रह जाती है..मन करता है जोर से चीख कर तुम्हें अपनी हर बात बताऊं..जहां भी हो बस मेरी हर बातें सुन लो.. अब तुम्हारे इस पसंदीदा गाने का बोल ही सच लगता है.. तेरे बिना जिंदगी भी लेकिन जिंदगी तो नहीं.. जिंदगी नहीं.. जिंदगी नहीं..."  

Saturday 23 June 2018

वो खफ़ा भी है, अपना-सा भी है...



वो अनदेखा आसमां है, अनछूआ स्पर्श है,
ख़ामोश ज़ुबां पर वो शायरी का हर्फ़ है..
अनकही किस्सों का सार है,
सुलगती रेत में शीतल ब्यार है..
वो खफ़ा भी है, अपना-सा भी है...

बिना पर के भी हर सपनों की उड़ान है,
हक़ीकत से परे दिल में दबी अरमान है.. 
जिसके होने से ज़िंदगी कुछ ख़ास है,
सबसे अलग जिसका एहसास है..  
वो खफ़ा भी है, अपना-सा भी है...

वो गजलों में लिपटी हुयी किसी के दिल की आवाज़ है,
अंतरे को जो मुखड़ा दे वो उस तराने की साज़ है..
मसरूफ़ इस ज़माने में फ़ुरसत का पल है,
सुकून की ज़िंदगी का तराशा हुआ कल है..
वो खफ़ा भी है, अपना-सा भी है... 




Monday 9 April 2018

यूं बचपन न खोता..

P.C- Saurabh Kumar

पेट की भूख ने ज़िंदगी के हर रंग दिखा दिए,
कंधो को बस्ते की जगह ज़िम्मेदारी के बोझ ने झुका दिए..
मासूम-सी हंसी के पीछे हर रोज़ नया ज़ख्म उभरता है,
दर्द के आंसू में भी इन आंखों में सपना पनपता है..
चाहत के फूल से भरा इनका जीवन का गुलदस्ता होता, 
अगर ज़माने की गलियों में यूं बचपन न खोता..

Wednesday 17 January 2018

इंसान बनना बाकी है..


किताबी ज्ञान प्राप्त कर लेना कोई बड़ी बात नहीं होती है... दो-चार अंग्रेजी की लाइनें बोल देने से कोई बहुत बड़ा विद्यवान नहीं हो जाता है... आप एक अच्छे इंसान कभी नहीं हो सकते, जब तक की आपके पास एक अच्छा दिल न हो... जो लोगों की भावनाओं, उनके दर्द, उनकी तक़लीफो को समझें... 

रोड़ की दूसरी तरफ़ मैं अपने दोस्तों के आने का इंतज़ार कर रही थी.. मैं खड़े-खड़े इधर-उधर देख ही रही थी की मेरी नज़र एक बूढ़ी औरत पर गयी, जो हर दुकान पर जा कर भीख़ मांग रही थी... आखिर क्यों इन्हें इस उम्र में ऐसे भीख़ मांगनी पड़ रही है ?? इनके बच्चे नहीं होते या उनमें संस्कार नहीं होते कि वो अपने माता-पिता को इस तरह रोड़ पर सुबह से शाम तक भटकने के लिए छोड़ देते है कि वो इधर-उधर से भीख मांगकर अपना गुज़ारा करें... वो बच्चे इतने क़ाबिल बन गए होंगे कि अपने ही माँ-बाप को अलग कर देते है या फिर वो बिलकुल भी क़ाबिल नहीं कि जन्म देने वाले माता-पिता को दो वक़्त की रोटी अपने पैसों से कमा कर खिला सके.... 
मैं ये सोच ही रही थी कि वो बूढ़ी औरत एक दुकान पर गयी, जहां कुछ लड़के और लड़कियां खड़े हो कर बातें कर रहे थे.. वो सब स्कूल यूनिफार्म में थे... तभी एक लड़का बाईक से आया, वो औरत उसके पास भी पैसे मांगने गयी.. उस लड़के ने उसके हाथ झटक दिए और वो दुकान के सामने लगे बास की लकड़ी के सहारे जा खड़ी हो गयी... वो लड़का और उसके दोस्त उस बूढ़ी औरत पर हंसने लगे.. उनमें से एक लड़की अपनी नाक सिकुड़े खड़ी थी... सब-के-सब उसे अछूत की तरह देख रहे थे पर किसी ने इंसानियत के नाते क्यों नहीं देखा ?? वो बच्चे हाईयर स्कूल के थे... मुझे स्कूल छोड़े तीन साल हो गए, जहां तक मैं जानती हूं... दूसरों से घृणा करना, उनका अनादर करना नहीं सिखाया जाता किसी भी स्कूल में... किताबें मैं भी पढ़ती हूं, पर किसी भी क़िताब में दूसरों पर हंसना नहीं लिखा गया है... स्कूल जाना.. किताबें पढ़ना.. ये सब तो बस औपचारिकता है... सही शिक्षा और संस्कार तो कहीं से भी हासिल की जा सकती है... 

सब कहते है ज़िंदगी में ये बनो.. वो बनो.. बेशक बनो पर उससे पहले एक अच्छा इंसान बनो, क्यूंकि ज्ञान मात्र क़िताबी अक्षरों को पढ़कर नहीं आता  जब तक कि आप उसके पीछे छिपे मुख्य उद्देश्य को न समझ ले... 
      

Saturday 6 January 2018

लम्हें में तू और तुझमें मैं..



ख़्वाब से घिरा मेरा सफ़रनामा..
यूं तेरे पहलू में मेरे हर ख़्वाहिशों का गुम हो जाना...
चमकती धूप में तेरा छाया बन जाना..
सूखे मौसम में बूंद की तरह बरस जाना...
ढूंढ़े ज़माना किसमें कौन है..
अब लम्हें में तू और तुझमें मैं...  

दुनिया की इस भीड़ में मेरे साथ चलना..  
उन्हीं भीड़ में मुझे मेरी आहट से पहचान लेना... 
वो चाँद जो ज़मीं से है दिखता ..
इसने ही बनाया तेरा-मेरा रिश्ता...
ढूंढ़े ज़माना किसमें कौन है..
अब लम्हें में तू और तुझमें मैं...  

ख़ामोशी में बात करने की वज़ह ढूंढना.. 
मेरी हल्की-सी मुस्कान के लिए तेरा हज़ारो गम चुनना... 
गम में मिली है हंसी सौगात तुझसे.. 
खुशियों की हर आगाज़ तुझसे... 
ढूंढ़े ज़माना किसमें कौन है..
अब लम्हें में तू और तुझमें मैं...