Wednesday 26 September 2018

वनस्थली- एक अलग-सी दुनिया...



मन में कोई चाह हो तो दबा कर नहीं रखते
भावनायेहमारे सच्चे मन की वो आवाज़ होती हैं,
 जिसे हर इन्सान कागज़ के टुकड़ो पर नहीं उतार सकता... 
और यही भावनाये कभी-कभी अनुभव का रूप ले लेती हैं ...
जिस पल में जो मिल जाये वह हमारे लिए काफी होता हैं, अपने सपनों को नयी उड़ान देने के लिए और ख्वाहिशों के परिंदों को पर देने के लिए... कुछ यादों.. कुछ बातों को पीछे छोड़, एक नयी सफ़र एक नयी मंजिल को पाने के लिए अपना नया कारवां निकल पड़ा... मन का हो तो अच्छा.. न हो तो और भी अच्छा.. यहां से एक अलग और अंजान सफर का आगाज हुआ.. जब पहली बार अपनी इस दुनिया में कदम रखा था, मुझे सब कुछ बिखरा हुआ सा लगा.. न कोई उम्मीद, न कोई चाह.. बस लगा ये मेरी दुनिया नहीं हो सकती है, तीन साल खत्म हो और मैं चली जाऊं यहां से.. पर आज ये दुनिया मुझे मेरी यादों की खिड़कियों से बहुत दूर दिखाई देती है..  जिंदगी के कुछ बीते पन्नों को पलटूं तो यहां की आबो-हवा आज खुशनुमा लगती हैं... ये दुनिया उतनी अपनी न थी, जितनी आज लगती हैं... ये अनचाहा सफर.. ये पराई दुनिया.. मेरी जिंदगी का अटूट हिस्सा है.. अब हर बात में इसकी याद आती है..


घर से दूर जिन्दगी ने बहुत कुछ सिखाया... गिर के उठना और खुद को संभालना भी आ गया..
जब भी शाम कमरे का दरवाजा खोलती हूं, आस-पास देखती हूं तो घर की बहुत याद आती हैं... वो माँ की बातें..वो लाड..वो प्यार..वो डांट बहुत याद आता हैं... पर वो बचपन कही खो सा गया और हम कब बड़े हो गए पता ही नहीं चला... किसने कहा की बड़े होने के लिए वजह चाहिए..? ये तो समय हैं जो मुझे आज हर बात पर बड़े होने का एहसास दिला जाता हैं.. पहले चीजों को जगह पर रखना कितना भरी लगता था, आज वही रोज का काम बन गया हैं.. समय-समय पर माँ का कहना इतनी देर हो गयी अभी तक खाया भी नहीं, अब इसका भी ख्याल कौन रखे...?
आज जब पीछे मुड़कर देखती हूं तो अपनी उस परछाई को धुंधली पाती हूं... लगता हैं कल ही की तो बात हैं जब पापा हर रात की तरह मुझे अपने पास बैठा जिन्दगी का नया पाठ पढ़ाते थे, मेरे सिर पर हाथ फेर चहरे पर मुस्कराहट के साथ कहते थे.. बहुत देर हो गयी जा कर सो जा
आज समय का पता ही नहीं चलता पर हां, उस स्पर्श को हमेशा महसूस करती हूं.. और जीवन में कुछ करना हैं तो हर कदम पर करुँगी.. क्योंकि वो मेरे हौसलों की उड़ान, मेरे जज्बों की पहचान हैं...

मेरा एक समय पर वहां होना ही मुझे अपने आप में बहुत बड़ी बात मालूम होती हैं.. उस जगह ने मुझे मेरे पापा के प्यार और माँ की ममता से अवगत कराया हैं.. अपने पढ़ाई के साथ-साथ मेरे मन में मेरे सभी शिक्षको के लिए बहुत इज्ज़त हैं.. उनका स्थान मेरे ज़ीवन में सर्वोच्च हैं.. मुझे हर कदम पर उनका साथ मिला, उनके सहयोग और मार्गदर्शन के बिना तो कुछ संभव ही नहीं.. एक अंकुरित बीज को बढ़ने के लिए सही देख रेख की बहुत आवश्यकता होती है, मेरी वही आवश्यकता मेरे शिक्षको ने पूरी की... 
मैं कभी नहीं भूल सकती अपनी इस दुनिया को जिसने मुझे सच में परिवार के मायने सिखाये हैं.. याद करती हूंसे हर वक़्त जब यह सोचती हूं... मैं बड़ी उस जगह हुई थी, जहां मेरा अपना परिवार था ही नहीं.. पर कुछ अंजान रिश्ते मेरे कब अपने बन गए पता ही नहीं चला.. आज मैं इतनी बड़ी हो गयी हूं कि अपनी इस दुनिया को चमक भरी निगाहों से देखती हूं.. उल्लास से अपनाती हूँ यंहा के लोंगो को.... चहरे पर सिकन होने के बाद भी मुस्कुराती हूं.. दिल में कसक हैं पर आज उसे मिटाने की हिम्मत भी रखती हूं..
कैसे भूल सकती हूं इस जगह को जिसने मेरा हाथ तब थामा था, जब मेरे अपने मुझे यंहा छोड़ गए थे.. मेरा हाथ थाम इसने मुझे इस काबिल बनाया कि, मुझे अपनी जिंदगी में कुछ कर गुजरने का हौसला जरुर हैं... आज मैं लोगों को बहुत गर्व और खुशी से बताती हूं अपनी इस दुनिया के बारे में.. जब भी देखते और सुनते है, मेरी इस दुनिया के बारे में तो यही कहते है.. बहुत खूबसूरत हैं तुम्हारी दुनिया और बहुत दिलचस्प हैं वहां की बातें...



PIC CREDIT- ANSHI VERMA 

Saturday 15 September 2018

हर रोज तुझे मैं लिखती हूं..



हूं खुली किताब जैसी, हर पन्ना सब पढ़ जाते है..
तेरे नाम के पन्ने को कोई पढ़े, उससे पहले पलट देती हूं..
बात एक समय की नहीं है, हर रोज तुझे मैं लिखती हूं..

मुद्दतों के बाद भी, उतनी ही शिद्दत है मेरी दुआओं में..
आखें नम नहीं होती, बस गला भर आता है..
सिर झुकाते ही, तेरे नाम की सदा गूंज जाती है..

तेरी एक-एक बात से मोहब्बत जैसा कुछ है..
यूं ही नहीं हर शब्द मेरे जहम में हर वक्त रहते है..
मोहब्बत जैसा सच में कुछ है,
पर ये मोहब्बत नहीं, उससे भी ऊपर है..