Saturday 23 June 2018

वो खफ़ा भी है, अपना-सा भी है...



वो अनदेखा आसमां है, अनछूआ स्पर्श है,
ख़ामोश ज़ुबां पर वो शायरी का हर्फ़ है..
अनकही किस्सों का सार है,
सुलगती रेत में शीतल ब्यार है..
वो खफ़ा भी है, अपना-सा भी है...

बिना पर के भी हर सपनों की उड़ान है,
हक़ीकत से परे दिल में दबी अरमान है.. 
जिसके होने से ज़िंदगी कुछ ख़ास है,
सबसे अलग जिसका एहसास है..  
वो खफ़ा भी है, अपना-सा भी है...

वो गजलों में लिपटी हुयी किसी के दिल की आवाज़ है,
अंतरे को जो मुखड़ा दे वो उस तराने की साज़ है..
मसरूफ़ इस ज़माने में फ़ुरसत का पल है,
सुकून की ज़िंदगी का तराशा हुआ कल है..
वो खफ़ा भी है, अपना-सा भी है...