Saturday 27 May 2017

वही सिखने की चाह...



"अगर कभी लोग आपके बारे में गलत बोले तो,
 उसे नकारात्म सोच में कभी भी तबदील न करे, 
और नाही लोगों के बातों का बुरा माने...
उनके सोच ऊपर उठकर आप हमेशा आगे बढ़ते रहे 
और खुद को और भी बेहतर बनाये" 

किसी के शब्द हमारे दिल को ऐसे छू जाते है जैसे किसी की लिखावट कोरे कागज़ पर अपने सारे भवनाओं को वयक्त कर जाती है और कभी न मिटने वाले अनोखे निशान छोड़ जाती है... वो शब्दों की खनखनाहट, वो चलने की आहट इतने ख़ास होते है कि गुजरते वक़्त के साथ भी उसका स्पर्श अनमोल-सा मालूम पड़ता है... आज भी वो चेहरे की चमक अपने आस-पास को रौशन कर रहा था, आज भी वो मुख से निकले मिठास के लफ्ज़ अपने आस-पास के कानो में मिश्री घोल रहे थे...

ज़िंदगी के इस सफ़र में हर इंसान हमारे लिए माएने नहीं रखता, पर कुछ लोग इस सफ़र में वो कड़ी होते है जिनसे हमारा जुड़ाव हमारे सफ़र को और भी सुनहरा बनता है, और वो कड़ी मेरे इस लिखावट से इस तरह जुड़ी है जिसका आगाज़ ही उस पल से हुआ था, जब पहली बार किसी ने मेरी गलती को सुधारा साथ-ही-साथ मेरी लेखनी को मज़बूत भी बनाया... 

"अरे !! तान्या... आ गये आप" इस आवाज़ की खनक और उन कदमों की आहट काफी महीनों बाद सुनाई पड़ी... पर बिल्कुल भी अनजान नहीं, वही शख़्सियत मेरे सामने... 
आज इतने दिनों बाद भी वही अपनापन, वही मान-सम्मान... बातों का दौर कुछ अजीब था कि फिर से पुरानी यादें ताज़ा हो गयी..  या यूं कहूं कि यादों से भी बढ़कर... उस पल में बहुत कुछ शामिल था ; कुछ सिखने की चाह, समझने की चाह, सही गलत में अंतर, लोगो को देखने का नज़रिया... हर बार की तरह आज इतने वक़्त गुजरने के बाद भी उनके हर एक शब्द ने मुझे बहुत कुछ सिखाया.. और तो और आज ज़िंदगी का पाठ भी  समझाया... पूरे रास्ते मन में ये ख्याल आ रहा था कि लगभग एक साल बाद मिलने जा रही हूं, क्या पता अब पहले जैसा कुछ न रहा हो? मेरी बातें भी याद होंगी या नहीं ? मेरा ज़िक्र तक होता होगा या नहीं ? पर मैं  गलत साबित हुई और इस बात की बहुत ख़ुशी है...आज मैं अपनी तरफ से जिस हुल्लास..उम्मीद से उनसे मिलने गयी उससे भी ज़्यादा पाया.. 
  
"खुली किताब की तरह, उनका एक-एक पन्ना सबको अनोखा स्पर्श महसूस कराता है... 
हर नकारात्मक सोच को सकारात्मक में परिवर्तित कर देता है...
 हर नापाक शब्द को पाक साफ़ कर एक नया आकार देना,
 वक़्त के चादर को खुद में समेट अपनी ज़िंदगी के हर कदम पर हमेशा मुस्कुराना,
 अपनी गुनगुनाहट से लम्हा पिरोहना... 
आप ज़िंदगी का वो आफ़ताब हो , 
जिसकी रौशनी अंधेरे को चीर हर कोने को उज़ागर कर जाती है..."     

Monday 22 May 2017

The moment he passed by me

 
All the flower blossom, almighty cherished,
Weather smiled, the ray seems like boon;
That beautiful sight appeared quite soon,
The moment he passed by me…

The essence of charm, aroma of pure soul,  
I ever felt;
The entire word of love anthem,
Seeking the time to be melt;
The moment he passed by me…

The existence of my dream, face of my imagination,
Uproar to be alive;  
 there it say, give a frame,
where picture survive;
The moment he passed by me…

Spark of my eyes, piece of my own beauty,
I ever realized;
Silence were the outspoken,
second were delightful; 
The moment he passed by me…  

Thursday 18 May 2017

ऐ खुदा! बना मुझे कुछ ऐसा



"हर रोज़ तेरा सजदा कर यही दुआ मांगती हूं,"


ऐ खुदा! बना मुझे कुछ ऐसा... 
किसी के सुख का हिस्सा मैं नहीं तो,
किसी के अश्कों में मेरी तस्वीर न नज़र आये.. 
अगर किसी को सुकून न दे सकु तो,
उसकी बेचैनी का कारण भी न बनु.. 

ऐ खुदा! बना मुझे कुछ ऐसा...
किसी की तकलीफ़ न दूर कर सकूं तो,
किसी को दर्द भी मेरी वजह से नसीब न हो.. 
अगर किसी के घाव पर मलहम न लगा सकूं तो,
उसके जख्मों पर नमक लगाने का कोई हक़ न हो..

ऐ खुदा! बना मुझे कुछ ऐसा...
किसी की तारीफ़ न करू तो,
किसी की बुराई करने का भी कोई हक़ न हो..
अगर कही रौशनी न कर सकूं तो,
कही का दीपक भी न बुझाऊ..

ऐ खुदा! बना मुझे कुछ ऐसा...
 जब-जब सिर झुकाऊ,  यही दुआ पाऊ, 
किसी के मुस्कुराहट का कारण बन जाऊ..
उदासी का आलम हटा,
ख़ुशी का टुकड़ा ढूंढ़ लाऊ..

ऐ खुदा! बना मुझे कुछ ऐसा...
कि खुद को दूसरों से अलग पाऊ..... 

Monday 15 May 2017

वो तेरा लम्हा, वो मेरा लम्हा...



एहसासों की लड़िया, सुने अनसुने किस्से..
सिमटती जा रही उन जंजीरों में,
जिन्हे जकड़ रखा है ख़ामोशी ने.. 
वो तेरा लम्हा, वो मेरा लम्हा...

तेरे लबों से खनकते वो बेबाक शब्द,
जर्रे-जर्रे को बहकाती, उस खनखनाहट से खुद को भींगो.. 
हर न पाक शब्द को पाक साफ़ कर जाता,
वो तेरा लम्हा, वो मेरा लम्हा...     
  
है कसूर जाने-अनजाने किस शख़्स का,
साजिश करते इन अनछुए पहलुओ का..
देखा करती थी सिर्फ किताबों में तेरा चेहरा,
अब तो है हर नज़र पर सिर्फ तेरा पहरा ...
कभी मुख़ातिब हो.. कभी रु-ब-रु तो हो,
वो तेरा लम्हा, वो मेरा लम्हा...

नशीली ब्यार बया करती..
फ़ूलों की खुशबूओं से सनी वक़्त के चादर को,
बहारों के धागें में पिरोहे, छाया उस समां का...
उनमें खेलती हसीन फिज़ाओ का,
हमारी आज़माइशों से भरा आलम बेफ़िक्री का.. 
वो तेरा लम्हा, वो मेरा लम्हा ...