Tuesday 31 October 2017

वो नहीं, आप तो समझदार हैं...



मेरी ट्रेन आने में काफ़ी वक़्त था, स्टेशन पहुंचते ही फ़ूड स्टॉल से मैंने पानी की बोतल ली और वेटिंग हॉल में जाकर बैठ गयी... बैग खोला नॉवेल निकालने के लिए पर वो बैग में थी नहीं, मुझे लगा शायद मैं घर पर ही भूल गयी हूं... फिर मैं बुक-स्टॉल पर गयी ,वहां से मैंने क़िताब ख़रीदा और वापस आकर अपनी ज़गह पर बैठ गयी... थोड़ी देर बाद एक बच्चा आया, हाथ आगे कर के मांगने लगा... "मुझे पिछली बार की बात याद आयी, जब भाई मुझे स्टेशन छोड़ने आया था, उस वक़्त भी एक छोटा बच्चा हमारे पास आया और अपना हांथ मुँह की तरफ़ ले कर कुछ मांगने लगा.. तब मैंने उससे खाने के लिए पूछा- "पराठे है, खाओगे?"
उसने हाँ में अपना सिर हिलाया... माँ ने जो मुझे खाना बना कर दिया था, मैंने उसमें से निकलकर उसे दे दिया, वो लेकर चला गया, आगे सीढ़ियों के पास उसकी माँ और भाई-बहन थे... उसने हमारी तरफ़ इशारा किया, शायद उन्होंने पूछा होगा कि किसने दिया... वह बार-बार इधर देखकर मुस्कुराये जाये रहा था... 

इस बार जब एक बच्चा आया तब मैंने पूछा- "खाओगे कुछ?"
उसने कहा- "नहीं, दीदी मुझे दस रूपये दे दो घर जाना है"
मैंने उससे कहा, घर जाना है.. कहां है तुम्हारा घर? 
उसने कहा, दूर है यहां से... यहां स्टेशन पर तो हम भीख़ मांगने आते है...सुबह से ही स्टेशन पर रहते हैं... रात को घर जाते है, फिर सारे पैसे घर ले जाकर देते हैं...  
मैंने पूछा- "तुम स्कूल क्यों नहीं जाते ?, पढ़ाई करने का मन नहीं होता... माँ-पापा को बोलो स्कूल भेजे तुम्हें "
उसने अपना शर्ट मुँह में लेते हुए धीरे से कहा- "मन होता है पढ़ने का पर, पापा नहीं भेजता है, और पैसे न ले जाने पर बहुत मरता है"... 
और माँ वो कुछ नहीं कहती, मैंने उससे पूछा...
"पापा उसे भी मरता है" उसने कहा..
मैंने उसे बिस्कुट का पैकेट दिया, उसने पैकेट को तुरंत फाड़ा और खाने लगा... खाते-खाते उसने कहा-" वो पैसे तो हम घर ले जाने के लिए मांग रहे थे, घर तो हम रोज़ पैदल जाते है... 

मुझे अच्छा लगा जब उस बच्चे ने सच बोला कि वो घर पैदल जाता है, पैसे तो घर पर देने के लिए चाहिए... 

ऐसे बच्चे न जाने कहां-कहां अपने माँ-पापा के कहने पर भीख मांगते है, ये तो बस एक आम बात थी जो मैंने उस बच्चे से पूछा... स्टेशन से गुजरते, मंदिर से निकलते न जाने कितने आदमी उन्हें एक-दो रूपये देकर चला जाता है, पर क्या पूजा कर के निकलने के बाद पुण्य की प्राप्ति के लिए ये काम है कि आप इन छोटे बच्चों को पैसे दो? 
बच्चे छोटी उम्र से ही पैसों के मोहताज़ नहीं होते, उन्हें खाने और खेलने से मतलब होता है बस... उन्हें सही शिक्षा देना उनके माँ-पापा का अधिकार होता है, पर बच्चो को स्कूल भेजने में उन्हें अपनी गरीबी नज़र आती है... पर ये गरीबी तब नज़र नहीं आती जब वो इन्हें पैदा करते है... सरकार की कई योजनाएं हैं जो इन बच्चो के लिए मुफ़्त शिक्षा, स्वास्थ और अन्य ज़रूरतों के लिए बनाई गयी है... पर लोग या तो इनके बारे में जानते नहीं या बच्चो से भीख़ मंगवाना इनका पेशा बन चुका है... 

पुण्य की प्राप्ति उस बच्चे को एक या दो रूपये देकर नहीं होगी... उसकी ज़िंदगी सवार कर होगी... अगर आप कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम उसे बताओ कि, वो स्कूल जाये वहां उसके लिए कई तरह की सुबिधायें उपलब्ध है... हो सकता है वो बच्चा एक दम से स्कूल न जाये, पर वो एक बार किसी से पूछेगा तो सही इसके बारे में... आपस में ही अपने भाई-बहन से बात तो करेगा इसके बारे में...उनके माँ-पापा तो पढ़े-लिखे या समझदार नहीं पर आप तो हो... 



  


       

Friday 6 October 2017

अब बस याद बनकर रह गयी...


अब बस याद बनकर रह गयी...
हर पल में मुस्कुराना सीखा है तुमसे,
ज़िंदगी को खुल के जीना सीखा है तुमसे..
बचपन में जब मैं कहती थी "बाल दर्द हो रहा है" तब तुम समझ जाती थी कि सिर दर्द हो रहा है..
मेरे स्कूल ना जाने पर तुम कहती थी, "आज तो भिण्डी-पूड़ी है लंच में"..
तो वही बस छूट जाने पर कहती थी, "एक ज़गह हर रोज़ जाने से इज्ज़त कम हो जाती है"..
छत पर टहलते-टहलते पुराने गाने सुनना' किचन में खाना बनाते-बनाते मुझसे अख़बार पढ़वाना...
टीवी में सीरियल देखते-देखते; होमशॉप का चैनल लगा आये दिन कुछ-न-कुछ आर्डर करना...
मेरे हॉस्टल से फ़ोन करने पर घर आने के बारे में सुनकर कहना- "यहाँ आना सबसे पहले, क्या बना कर रखूंगी, क्या खायेगी बता ?"
हर बात अब बस याद बनकर रह गयी...

कुछ भी बातें कहनी होती थी, बिना किसी डर के तुमसे कहती थी, मन का हर बोझ तुम्हारे सामने हल्का कर लेती थी,
होंगे बहुत लोग मुझे समझाने वाले, मेरी काबिलियत पर मुझे सराहने वाले..
 बहुतों की भीड़ में भी मैं ख़ामोश रहूंगी, कुछ दिल की बातें अब दिल में ही रहेंगी क्योंकि तुम्हारी ज़गह कोई नहीं ले सकता और नाही तुम्हारी कमी पूरी कर सकता है...

जिस पल में जो मिल जाये उसे समेटना सीखा है तुमसे,
खुशियों के साथ-साथ गम को भी अपनाना सीखा है तुमसे..
तुम्हारी हर बात, हर साथ जान से भी ज़्यादा प्यारी है,
ज़िंदगी का सबसे अनमोल तोहफ़ा "गुनगुन" दिया है तुमने हमें,
अब तुम्हारी बातें और साथ बस याद बनकर रह गयी...