किताबी ज्ञान प्राप्त कर लेना कोई बड़ी बात नहीं होती है... दो-चार अंग्रेजी की लाइनें बोल देने से कोई बहुत बड़ा विद्यवान नहीं हो जाता है... आप एक अच्छे इंसान कभी नहीं हो सकते, जब तक की आपके पास एक अच्छा दिल न हो... जो लोगों की भावनाओं, उनके दर्द, उनकी तक़लीफो को समझें...
रोड़ की दूसरी तरफ़ मैं अपने दोस्तों के आने का इंतज़ार कर रही थी.. मैं खड़े-खड़े इधर-उधर देख ही रही थी की मेरी नज़र एक बूढ़ी औरत पर गयी, जो हर दुकान पर जा कर भीख़ मांग रही थी... आखिर क्यों इन्हें इस उम्र में ऐसे भीख़ मांगनी पड़ रही है ?? इनके बच्चे नहीं होते या उनमें संस्कार नहीं होते कि वो अपने माता-पिता को इस तरह रोड़ पर सुबह से शाम तक भटकने के लिए छोड़ देते है कि वो इधर-उधर से भीख मांगकर अपना गुज़ारा करें... वो बच्चे इतने क़ाबिल बन गए होंगे कि अपने ही माँ-बाप को अलग कर देते है या फिर वो बिलकुल भी क़ाबिल नहीं कि जन्म देने वाले माता-पिता को दो वक़्त की रोटी अपने पैसों से कमा कर खिला सके....
मैं ये सोच ही रही थी कि वो बूढ़ी औरत एक दुकान पर गयी, जहां कुछ लड़के और लड़कियां खड़े हो कर बातें कर रहे थे.. वो सब स्कूल यूनिफार्म में थे... तभी एक लड़का बाईक से आया, वो औरत उसके पास भी पैसे मांगने गयी.. उस लड़के ने उसके हाथ झटक दिए और वो दुकान के सामने लगे बास की लकड़ी के सहारे जा खड़ी हो गयी... वो लड़का और उसके दोस्त उस बूढ़ी औरत पर हंसने लगे.. उनमें से एक लड़की अपनी नाक सिकुड़े खड़ी थी... सब-के-सब उसे अछूत की तरह देख रहे थे पर किसी ने इंसानियत के नाते क्यों नहीं देखा ?? वो बच्चे हाईयर स्कूल के थे... मुझे स्कूल छोड़े तीन साल हो गए, जहां तक मैं जानती हूं... दूसरों से घृणा करना, उनका अनादर करना नहीं सिखाया जाता किसी भी स्कूल में... किताबें मैं भी पढ़ती हूं, पर किसी भी क़िताब में दूसरों पर हंसना नहीं लिखा गया है... स्कूल जाना.. किताबें पढ़ना.. ये सब तो बस औपचारिकता है... सही शिक्षा और संस्कार तो कहीं से भी हासिल की जा सकती है...
सब कहते है ज़िंदगी में ये बनो.. वो बनो.. बेशक बनो पर उससे पहले एक अच्छा इंसान बनो, क्यूंकि ज्ञान मात्र क़िताबी अक्षरों को पढ़कर नहीं आता जब तक कि आप उसके पीछे छिपे मुख्य उद्देश्य को न समझ ले...