Friday 31 March 2017

फिर से बच्ची बना दो न पापा...



ज़िंदगी के अंजान रास्ते पर चलना मुश्किल लगता है,
ख़ामोशी से बातों को सहना भी भारी लगता है.. 
बचपन की वो दौड़,
मेरे जन्म की वो किलकारी, लौटा दो न पापा.. 
फिर से बच्ची बना दो न पापा...

देखा करती थी, हमेशा दिल की नज़र से सबकुछ,
अब वही नज़ारे कांटो की तरह चुभते है.. 
हर किसी को देख ये चेहरा मुस्कुराता था,
अब वही मुस्कराहट दिखावटी लगती है.. 
वो नाज़ुक सा दिल,
वो मासूम सा चेहरा लौटा दो न पापा..  
फिर से बच्ची बना दो न पापा...

अब हर सुबह होती है,
बीते रात के आंसुयों को समेट कर..
रोज़ का फ़लसफ़ा गुजरता ही नहीं,
दोपहर  की कड़ी धूप शाम को जला जाती है... 
वो रंगीन सुबह,
वो हसीन शाम लौटा दो न पापा..
फिर से बच्ची बना दो न पापा...

ज़हन में अब नए सपने पनपते है,
चैन से सोने के लिए आंखे तरसती है.. 
रात के बैठे, कब सुबह हो जाती है;पता ही नहीं चलता, 
 रात में नींद आती नहीं,
सुबह  सोने की फुरसत नहीं...
वो सुकून की नींद,
वो नए सपनों की ख़ुशी लौटा दो न पापा..
फिर से बच्ची बना दो न पापा...







Surrogacy: A mother understands what a child does not say:)



The ministry of health and family welfare of India introduced the surrogacy bill in the year 2016, for uplifting the rights of the surrogate mother as well as the bill aimed at banning commercial surrogacy to protect women from exploitation. Although the bill permits altruistic surrogacy under strict regulations, as an agreement between the surrogate and infertile couple in which surrogate mother will be paid for the entire medical bill. Surrogacy is only for the couple who are married at least for the five years, and they do not have any biological, adopted or surrogate child.

It is prophecy of intend couple, that baby has to alive and healthy, for that a surrogate mother must live a healthy lifestyle to take care of someone else’s child. The age of the surrogate mother should be between 25-35 and her body mass index (BMI) should be under 32. Intended parents basically want to make sure surrogate is taking care of the pregnancy like they would, if it was their own child were carrying.

Surrogacy is said to an agreement, but there is no guarantee for baby’s life and health. He or she is not any commodity that anyone can change or buy another after baby’s death.
If in case surrogate mother changed her mind upon birth and refused to hand over the child to intended parents a legal action will be taken against her, but what about her feeling that arose for baby, that emotional touch which she recognize in nine months. Is it easy for her to give the baby on an agreement?  As well as who will take care of her after the birth of the baby?

The surrogate carries infant in her womb for nine months and that duration is sufficient to get emotionally connected with baby. The feeling which she comes to know during the period of pregnancy is priceless, the moment when baby kick and rotate around the wall of uterus is the most phenomenal feeling that a woman feel in her lifetime. Just because of an agreement emotionally connected bond broke up and relationship gets over. A surrogate mother cannot be genetically related to that child, legally and psychologically, she will not be having any right over the child even the name is also not revealed in the birth certificate. There will be no connection of baby and surrogate mother after the baby’s birth.
On the other hand intended parents may not have the same parental bonding experience with the child, they have to prepare for the emotional transfer of the baby and ensure that they are ready to develop a healthy attachment. They have to confirm the baby senses as from last nine month baby’s emotions was attached with surrogate mother.

Sunday 26 March 2017

यूं खुद से अलग हो जाउंगी मैं..


यूं खुद से अलग हो जाउंगी मैं.. 
बीते सालों में खुद को नहीं पहचान पाउंगी मैं... 
जिस आसमान को हमेशा ज़मी से देखा,
एक दिन उसे भी छू जाउंगी मैं... 
गिर कर संभालना सीख रही हुं,
वक़्त के साथ जख्मों पर मलहम लगाना सीख जाउंगी मैं... 
यूं खुद से अलग हो जाउंगी मैं.. 
बीते सालों में खुद को नहीं पहचान पाउंगी मैं...

अभी है उदासी तो  क्या हुआ,
एक दिन अपनी हंसी का फूल खिलाऊंगी मैं... 
बिखरे है अरमान, पर टूटा नहीं है हौसला,
अरमानों को समेट, हौसलों का पंख लगा.. 
एक नई दुनिया बनाउंगी मैं... 
यूं खुद से अलग हो जाउंगी मैं.. 
बीते सालों में खुद को नहीं पहचान पाउंगी मैं...

मिलता है धोखा हर कदम पर,
गिर जाते है लोग हर बार मेरी नज़रों में..
सबक ले इन सब से,
खुद की नज़रों में सबसे ऊपर उठ जाउंगी मैं.. 
यूं खुद से अलग हो जाउंगी मैं.. 
बीते सालों में खुद को नहीं पहचान पाउंगी मैं...

छूट जाता है बहुत का साथ जिंदगी के सफ़र में,
टूट जाते है कई रिश्ते, बीच राह में.. 
बीते कल को भूला, नए चेहरे को अपनाउंगी मैं... 
टूटे रिश्तों को सजोए, नए रिश्ते बनाउंगी मैं... 
यूं खुद से अलग हो जाउंगी मैं.. 
बीते सालों में खुद को नहीं पहचान पाउंगी मैं...

Wednesday 22 March 2017

...खिड़किया...

क्योंकि कुछ खिड़किया ऐसी होती हैजिसके खुलते ही ताज़ी हवा के साथ-साथ अनजाने रिश्तो का सफर शरू हो जाता है....


माँये शब्द अपने आप में ही खुद को पूरा करता है... पर हांइसके न होने से सब कुछ अधूरा हैइंसान की उतपत्ति ही इसी से होती है... जीवन में सब साथ छोड़ दे पर माँ कभी नहीं अपने बच्चो को छोड़ कर जाती है... खुद का शरीर काट वो अपने बच्चे की हर ख्वाहिशों को पूरा करती हैउसके सपनों को अपना समझ हर पल जीती है... ज़माने के तानों सुनकरलोगो की खरी-खोटी सहकर भी एक माँ अपने बच्चे को उन हज़ारो बद्दुआओं से बचा लेती है क्योंकि माँ की दुआओं में इतनी शक्ति होती है... जिसके सामने बड़े से बड़ा रोग और तकलीफ अपना सर झुका लेते है...
ये कहानी हैएक ऐसे ही माँ की जिसने अपनी बच्ची को मौत के मुँह से छीनउसे नया जीवन दिया..
आज बुराईया इतनी बढ़ गयी है किहम कहते है इंसानियत खत्म हो गयी... तो इस बात को भी गलत साबित करती है ये कहानीक्योंकि कुछ खिड़किया ऐसी होती हैजिसके खुलते ही ताज़ी हवा के साथ-साथ अनजाने रिश्तो का सफर शरू हो जाता है....

एक गरीब बूढ़ी माँ घर में काम करती रहती हैतभी बहार से उसकी बेटी आती है...
रश्मि- माँ..माँ.. माँ... क्या कर रही हो ?
माँ- कुछ नहीं मेरी बच्ची  तू बोल न... क्या बोलना है तुझे...
रश्मि- माँतुम हमेशा समझ जाती हो मेरे मन को...
माँ- हांमैं तेरी माँ हूँ,..  माँ तो सब समझ जाती है....
रश्मि- माँ... मुझे पढ़ना है... आज मैंने रास्ते में बहुत सारे बच्चे को स्कूल जाते देखामुझे भी पढ़-लिख कर कुछ बनना है....
माँ- हांमेरी बिटिया रानी...  तू जी लगा कर पढ़नाजितना चाहे पढ़ना... मैं कुछ भी करुँगी तुझे पढ़ाने के लिए....
रश्मिनहींमाँ तुम परेशांन मत हो.... मैं पढ़ लूंगी...
माँपढ़ लूंगी ?ऐसे कैसे पढ़ लेगी...
रश्मिमैंने कहा न मैंपढ़ लूंगी...
माँअगर पढाई करने से तेरे चहरे पर मुस्कराहट रहती हैतो मेरी बच्ची तू खूब पढ़... मैं दिन-रात एक कर दूंगी तुझे पढ़ाने में....
रश्मितुम इसकी चिंता मत करो... तुम बस अपना ख्याल रखो... और आमदनी के पैसो से अपना इलाज़ सही से करवाओक्योंकि तुम स्वस्थ रहोगी तो मेरे चहरे पर मुस्कराहट अपने आप बनी रहेगी...

अगली सुबह रश्मि कुछ बच्चो को स्कूल जाते देख  पीछे जाती हैवहां क्लास में बच्चो को पढ़ता देख... वो चुपचाप शिक्षक के द्वारा बोले जा रहे शब्दों को ध्यान से सुनती हैउससे साफ-साफ सुनाई नहीं आता फिर भी पूरी कोशशि करती है सुनने की...... रश्मि ऐसा रोज़ करती थी... एक दिन शिक्षक ने उसे देख लियाउससे कुछ पूछते वो डर कर वहां से भाग गयी....
अगले दिन भी शिक्षक ने देखा फिर उससे पूछा- तुम कौन हो यहाँ क्या कर रही हो ?
रश्मि बिल्कुल सकपका गयीडर के मारे कुछ नहीं बोला...
ऐसा करते उसी क्लास की एक बच्ची ( विद्या ) ने देख लिया... वो समझ गयी की रश्मि यहाँ क्यों आती है...रश्मि ने भी विद्या को देखा...
अगली सुबह क्लास में विद्या कहती है- बहुत गर्मी हो रही खिड़की खोल दो....
वो ऐसा जान बुझकर करती है ताकि रश्मि को सब साफ-साफ सुनाई दे...
रश्मि समझ गयी की विद्या ने ऐसा क्यों कहा... उस दिन के बाद से रश्मि सब कुछ साफ-साफ सुन पाती थी और समझ भी जाती थी....
घर आकर वो बहुत खुश होती है और दौड़कर माँ के गले लग जाती है..
माँ- क्या बात है मेरी लाडो आज इतनी खुश है...
रश्मि- हांमाँ अब मैं ज़रूर बड़ी अफसर बनूँगी... फिर तुम्हे कोई काम नहीं करना पड़ेगा...

स्कूल जाने के दौरान,एक दिन छुट्टी के वक़्त वो पकड़ी गयीसारे बच्चे उसका मज़ाक उड़ाने लगे.... शिक्षक भी इस बार ज़ोर से उससे पूछते है.... रश्मि सिर्फ विद्या की तरफ देखकर कहती है
रश्मि- दीदी...दीदी...

फिर रश्मि वहां से चली जाती है... फिर सब विद्या से पूछते हैवो कौन थी ?
विद्या- वो यहाँ पढ़ने आती थी हमसब की तरह....

एक दिन अचानक रश्मि की तबीयत ख़राब हो जाती हैउसे बहुत उलटी होती हैमुँह से खून भी निकलता है.. माँ बहुत डर जाती है... वो पड़ोस से लोगो को बुलाती है... सब आते है... पर कोई मदद नहीं करता...
आपस में औरते रश्मि को ऐसे देख कहती है- न जाने कहा मुँह काला किया होगा... जवान लड़की पर नजर रखनी चाहिए थी...
दूसरी कहती है - अरे ! एक अकेली माँ क्या-क्या करे बाप होता तो ठीक रहता..
पहली- अब तो भगवान  जाने क्या होगा?
यह सुनकर माँ की आँखों से आंसू छलक पड़ते है... फिर भी वो किसी की नहीं सुनती और रश्मि के इलाज़ के लिए सबसे मदद मांगी है और काम खोजती है...
उससे रुई की बत्ती बनाने का काम मिलता है,और वो बत्ती बना कर मंदिर के बहार बेचती है... ट्राफिक सिग्नल के पास इस हालत में भीख मांगती हैताकि किसी भी तरह उसकी बेटी ठीक हो जाये...

रश्मि को वो डॉक्टर के पास ले कर जाती हैउनकी गरीब देखकर उससे हॉस्पिटल में घुसने नहीं देते
माँ- भईया , जाने दो भीतर मेरी बेटी बहुत बीमार है... एक बार डॉक्टर साहब को दिखा दूभगवान तुम्हे हर सुख देगा...भईया जाने दो...
वॉचमैन- ये सरकारी अस्पताल नहीं हैयहाँ की फीस की भी हैसियत नहीं है तुम जैसो कीजाओ किसी सरकारी अस्पताल में....
वॉचमैन उसे गेट से ही भगा देता है...
माँरश्मि को लेकर सरकारी हॉस्पिटल में जाती है,वहां दिखती है... डॉक्टर दवाईया लिखते हैजो बहुत महंगी होती है...
दवाईयो का रसीद ले कर माँ मेडिकल शॉप पर जाती है... वहां भी रुपये ना होने की वजह से दूकानदार उससे दवाईया नहीं देता है...
माँ- बेटामेरी बच्ची के लिए है ये दवाईया...वो बहुत बीमार है बेटामैं तुम्हारे बाकी के रूपये जल्द ही दे दूंगी बस मुझे अभी ये दवाईया दे दो... उससे ज़रूरत है इसकी...
दूकानदार- देखिये माँ जीहमने यहाँ मुफ्त में दवाईया बाटने के ली दुकान नहीं खोल रखा है...
माँ- बेटामैं तुमसे मुफ्त में कहा मांग रही हूँ...
दूकानदारनहींहम उधारी भी नहीं देतेअब जाओ यहाँ से....

कुछ रूपये जमा होने के बाद माँ दवा ले आती है और रश्मि को खिलाती हैपर रश्मि कहती ही उलटी कर देती है... कुछ दवाईयो का असर होता हैबाकि सब बाहर निकल जाते थे...  एक दिन फिर दवाईयो के लिए वो दुकानदार के पास जाती हैइस बार भी उधार में मांगती है... पर इस बार उससे दवाईया मिल जाती है क्योंकि उसकी तारीख खत्म हुयी रहती है...
दुकानदार-हाँमाँ जी बिलकुल ले जाइये दवा....
माँभगवान भला करे तुम्हारादुआओ में बहुत ताकत होती है... मैं अपनी बच्ची के लिए रोज़ दुआ मांगी हूँ उपरवाले से... देखना मेरी बच्ची बिलकुल ठीक हो जाएगी..
दूकानदारइसे खा कर तो तेरी बेटी सीधे ऊपर जाएगी.. (वो मन ही मन बोलता है )
दुकानदार पास खड़े आदमी से - अरे दे दे दवाईया,इस बुढ़िया को क्या पता चल रहा....
आदमीहाँवैसे भी हम करेंगे भी क्या इस दवा का... बेटी वैसे भी मारेगी और ऐसे भी मर जाये तो क्या होगा..

दुकान वाले को ऐसा करते विद्या देख लेती हैवो माँ के पीछे-पीछे जाती है... घर पहुंचकर वो रश्मि को देखकर चौक जाती है.... माँ के उधर मुड़ते ही वो दवाईया फेक देती है और सारी शीशियां तोड़ देती है ,तभी माँ विद्या को देख लेती है और वो सामान उसकी तरफ फेकने लगती है...
माँ- तू कौन है मेरी बेटी को मारने आयी हैं तू... मैं सब समझती हूँ....
रश्मि- नहींमैं तो बस आपको बताने आयी हूँ कि ,ये दवाईया खराब है... इनकी तारीख खत्म हो चुकी है... आप इससे रश्मि को मत खिलाइये..
माँ- धन्यवाद बेटीअगर मुझेसे ये गलती हो जाती तो आज मैं अपनी बच्ची को खो देती.. मैंने कहा था उस दुकानवाले से दुआओ में बहुत शक्ति होती हैऔर देखो सच में... भगवान ने तुम्हे भेजा मेरी बच्ची की जान बचाने के लिए...

रश्मि,माँ को अच्छी जगह काम दिलाती हैकाम से मिले रूपये से माँ रश्मि का इलाज़ करवाती है... रश्मि स्वस्थ हो जाती है... और अपनी पढाई पूरी करने स्कूल भी जाने लगती है...

मंज़िल दूर और सफर बहुत है... छोटी-सी ज़िन्दगी फ़िक़्र बहुत है....
मार डालती ये दुनियाकब की हमे....
लेकिन माँ की दुआओ में असर बहुत है....

Tuesday 14 March 2017

Be patient if you can...


"Patience is bitter, but its fruit is sweet"


Life is full of uneven situations,
Intermittently you break down,
Frequently you are athletic,
however, you feel down in the dumps;
be patient if you can…

People laugh when you fall,
let, that laughter to be the bed of roses,
take your failure as a beam,
beam of your accomplishment,
flying colours are waiting for you;
be patient if you can…

You own strongest weapon,
but you don’t appraise,
you think it’s too hard,
it can’t be done,
adopt that weapon in your habit,
be patient if you can…

A minute here, a minute there,
an hour, fast departs,
it’s enough to cause despair,
chill the warmest heart,
be patient if you can…













Friday 10 March 2017

शायद ही पनपता है ये रिश्ता...

दोस्तों के बिना जीवन की कल्पना ही अधूरी है..
सुदामा ने श्री कृष्ण से पूछा कि... "दोस्ती का असली मतलब क्या होता है"...?
कृष्ण ने हंसकर कहा... "जहां मतलब होता है..वहां दोस्ती कहां होती है..!! 


दोस्ती..दोस्ती तो वो होती है जो निस्वार्थ भाव से की जाती है, और एक के मरने के बाद भी निभाई जाती है... 
इस बात में उतनी ही सच्चाई है जितनी मजबूत वो दोस्ती है... जितना अनोखा उस दोस्ती का एहसास है... 

न कोई जाती, न कोई धर्म होती है इसकी पहचान..
ये बंधन तो होता है, बिल्कुल अंजान... 
खून के रिश्ते से ऊपर होता है औहदा जिसका.. 
गंगाजल से पवित्र होता है सच्चे दोस्त का रिश्ता... 
होता नहीं ताउम्र निभाने का वाद..
ये भी नहीं कि कौन किससे जिन्दा रहेगा ज़्यादा...
किसी के सपने को अपना मान..
किसी के नज़रिये को अपना बना... 
हर पल किसी का अस्तित्व अपने अंदर,
ज़िंदा रखना नहीं होता आसान...
अगर है किसी की दोस्ती ऐसी तो कायम करती है,
ज़िंदगी में अद्भुत मिशाल...  


Wednesday 8 March 2017

The way I live



I never bother about materialistic life,
as I’m busy in my sensible world;
I always radiant my excitement and enthusiasm,
few inner treasure sometime ask me to reveal myself,
but my silence makes sense all the time…

I never want outer accessories,
as I glow in my passion,
My words enlighten myself,
then any other jewels,

I never afraid of failure,
as I own self-possession,
passionate in pursuing my dreams,
every time uplifting my desire high,
with the span I fly and fly…









  

अनोख़े निशान...


"पाक साफ़ होते है ये अल्फ़ाज़...तभी तो बनते है अनोख़े निशान"

लम्हों की निगरानी में हमेशा रहते है मेरे अल्फ़ाज़,
स्याही से लिखे कागज़ के पन्नों पर,
यूं ही नहीं छोड़ते अपने निशान,
न जाने कब कहां कोई फ़लसफ़ा बन जाये...
खामोशियों की उस आवाज़ में,
बे मौसम उस बरसात में,
अंधेरे की उस हल्की सी रौशनी में,
हर पल ढूंढते है अपनी पहचान...
वक़्त के गुजरे गहरे समंदर,
यादों का वो लंबा सफर,
कुछ कहानियां अंदर ही अंदर,
उसे हर पल निखारती है,
पाक साफ़ ये नीली पोशाक,
उसे हर कदम पर सवारती है...
होता है इसका अनोखा बंधन,
कुछ इस तरह अपने आप में,
हर पल नए आज़माइशों की तलाश,
बनाते है इसे पल दो पल ख़ास,
हकीकत से कही ज़्यादा ख़ुबसूरत होती है इसकी कल्पना,
ज़िंदगी से कही बढ़कर होती है इसकी चाह...
सफर दर सफर लिए एक नया आगाज़,
हर कदम पर बिखरे ये अल्फ़ाज़,
कई दफ़ा उन लम्हों की आगोश में,
सच में छोड़ जाते है अनोखें निशान... 





Thursday 2 March 2017

सपनों के निशान...



यूं लम्हो को पिरोहने में गुजर जाती है जिंदगी,
मान लो तो कुछ अजीब है इसकी बंदगी...
यहां बनता है फ़लसफ़ा हर कदम पर,
होती है मुश्किलें हर डगर पर...
कुछ ख्वाहिशों का दरिया लेकर निकलो,
कई सपने बेख़ौफ़ देख लो...
टूटे रिश्तों  का अनमोल टुकड़ा समेट,
अश्कों में आने वाले कल का आगाज़ लपेट...
एक दौर निकल जाता है दबे अरमानों को पनपने में,
उम्र गुज़र जाती है कामयाब बनने में...
होते है कुछ सफर ऐसे,
अनदेखा हो हर मोड़ जैसे...
राहे नहीं होती आसान,
हर कदम पर रह जाते है.. सपनों के निशान...
ज़िंदगी के भी रंग रूप का क्या कहना,
मुस्कुराता है जिसके आइने में हर लम्हा..
अब बीते लम्हों  की परछाई नज़र आती है,
दबी आवाज़ों में बहुत कुछ कह जाती  है...
बनकर रह गया है अफ़साना वो गुजरा कल,
शायद, बनता जा रहा है रंगीन हर पल...
ढूंढ लाओ उन पलों को,
समेट लो आज की क़ामयाबी को...
मिला दो इस क़ामयाबी को उस कल से,
चुन लो खुशियां अपने हर पल से...
जोड़ लो उन रिश्तों को आज के सफर से,
और छीन लो वो वक़्त हर मंज़र से...
बना दो इस ज़िंदगी को और भी खुबसूरत ,
ताकि, तुम्हें कभी न कहना पड़े... मुझे इसकी भी थी ज़रूरत...







Wednesday 1 March 2017

If I ever lost...


whenever we are together, every moment is miraculous
gaze at sky, see the shooting star with a holy crave, 
each word of our devotion is pure,
to make that moment alive,
and my believe sure, 
you’ll come to find me; if I ever lost…

while crossing the road,
from the fear of being apart,
I always clasp your little finger, 
it act as heal;
of my every fear and fright,
to identify the same feel, 
you’ll come to find me; if I ever lost…

the moment we walk together, and suddenly you fall;
instead of giving my hand;
I laugh on predicament like a stupid,
and me too fall on the land,
For that idiotic laugh
you’ll come to find me; if I ever lost...

recalling all the moments,
that we shared together;
and the day you said; we will be together forever,
For that precious word,
you’ll come to find me; if I ever lost…