Wednesday 17 October 2018

आदत है..जरुरत है

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यादों के झरोखों से निकल आता है,
मेरी बेतुकी बातों में समा जाता है.. 
जब भी तुझे पिरोहने बैठूं,
रेत की तरह फिसल जाता है.. 

खबरों के खेल में तू हर बार जीत जाता है,
जिरह की चाल में उलझा, हर बात जान लेता है.. 
करती हूं हर बार गुस्ताखियां,
पर कभी न निकाली तुने मुझमें कोई भी खामियां.. 

बातों से किया तुझे हताश, 
दिए जख्म, पर कभी न किया इलाज.. 
पूछा मैंने, "बुरी तो नहीं लगी कोई बात"
हल्की-सी मुस्कान के साथ,तुमने दिया जवाब-
"आदत है..जरुरत है इनकी,  
अच्छी लगती है तुम्हारी हर बात.. 
अधूरी न रह जाए ये दास्तां, बस एक ही है अरदास.. 
हो जाए मुकम्मल ये मोहब्बत और तुम्हारा साथ.."

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