Tuesday 12 September 2017

जहां होंगे तेरे निशान


है आरज़ू की न रहे कोई मलाल,
बेवक़्त धारा की लड़िया सुलगते अरमान... 
मिलेगी वहां दो ज़हा को पहचान...
लगेगी ये ज़मीं और आसमान एक समान,
जहां होंगे तेरे निशान...

बनते बिगड़ते बातों से, 
अनकही मुलाकातों से, 
बांधकर रख दूं उन अश्कों को..
जिसमें नज़र आएगा चेहरा तेरा...
हो जायेगा ये जग पराया,
खो जायेगा ये मदहोश समां.. 
सबसे अलग हो मुझे होगा ख़ुद पर गुमान,
जहां होंगे तेरे निशान...

यूं तो कहने को है, ये चमक भरी दुनिया अपनी, 
ये जहां भी अपना, वो कायनात भी अपनी..
हो जायेंगे एक दिन ये हमसे दूर,
होगा खूबसूरत वो आलम..
बनेगा ज़न्नत से भी प्यारा वो संसार,
जहां होंगे तेरे निशान...

होगी चाह उन हसीन लम्हों की,
गहराइयों में डूबे महफ़िल की.. 
रौशनी ही रौशनी होगी हर तरफ़, 
चमकते सितारों से घिरे.. 
दर्पण में साफ़ झलकाती, ख़्वाहिशें बेहिसाब,
जहां होंगे तेरे निशान...

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