Saturday 11 August 2018

देखा है उन आंखों को चमकते हुए...



टूट कर बिखर गए सपने तो उनका क्या कसूर,
खनक की टीस अश्कों के साथ बह जाती है..

देखा है उन आंखों को चमकते हुए,
जिससे आंसूओं की लकीर खींच जाती है..
लबों से बय़ा कर पाना शायद मुश्किल हो,
उसकी सिसकियां हर सांस का बोझ उठाती है..

मिट्टी का घर बना खिलखिला उठते है,
बचपन का हर रंग उस आशियाने में भरते है..
नंगे पांव में हुए छालो की फिक्र नहीं,
दुनिया की सैर टायर के झूले पर किया करते है,

रोज ख्वाहिशों का जनाज़ा निकलता है,
न जाने कितने अरमान दफ़न हो जाते है..
खुल कर जिंदगी को जीने से पहले ही, 
पेट की आग में बचपन झुलस जाता है..






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