साधु के भेष में वो दरिंदा
बन, उसकी इज़्जत तार-तार कर जाए..
सच्चाई की वीणा बजा वो, झूठ
का परचम लहराएं..
हजारों बार कुरेदा जाता है,
उसके जख्मों को..
वो चिखती-चिल्लाती है, अदंर
से बार-बार रोती है..
दबा दी जाती है उसकी आवाज,
क्योंकि सबसे ऊपर है समाज..
इंसाफ के इंतजार में जख्म
नहीं भरता, हर बार नया चोट है उभरता..
लहु-लुहान हुई आत्मा, सहम
कर रह जाती है..
सुखे हुए आंखों के आंसू,
कितना कुछ बोल जाती है..
सब कहते है वक्त नहीं
लगेगा, सब ठीक हो जाएगा..
जरा समझना इस बात को ;
वक्त-वक्त की बात में उसे
हर वक्त जीना-मरना पड़ता है..
कभी रखकर देखना खुद को उसकी
जगह पर ;
“नासूर” भी कुछ होता है, शायद इसका अंदाजा लग जाए...
Bahut badhiya tanya
ReplyDeleteBhut hi umda
ReplyDeleteShukriya
ReplyDeleteHeart tauching
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