गहराते जख्मों की उम्र ही
क्या है ?
साथ चल रहे, वक्त का मलहम
लगाना बाकी है..
कई पुराने किस्से मिटते
जाते है,
मिटे स्याही को अपना अंश
बनाना बाकी है..
न जाने चुप क्यों हो जाती
है ये जबां,
उन खामोशी में अनकहे अफसाने
और भी है..
शाम हसीन है, हिस्सा हूं उस
महफिल का,
कई जाम को पीना अभी बाकी
है..
खुद को काबिल बनाने की लत
में,
तलब के जश्न को मनाना अभी
बाकी है..
चुभता है इरादों के ठहराव
हर बार,
ख्वाहिशों के सफर में मोड़
और भी है..
एक मामूली तस्वीर है, अकश् आईना
है,
फिके रंग उभरना अभी बाकी
है..
पाक मोहब्बत की फलक से,
खुशियां उझालना अभी बाकी है..
यूं ही नहीं दिल में उठी
कसक कहती है,
बंदिशों से आगे, एक जहां और
भी है..
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