Saturday, 4 August 2018

कुछ अधूरा-सा अब पूरा होने को है...




शाख से टूटा पत्ता स्याही का मोहताज है,
अधूरे अंतरे को मुखड़े की तलाश है.. 
बेशक कई सपने पनपते है इन आंखों में,
ख्वाहिशों का जिक्र रहता है अनकही बातों में.. 
कुछ अधूरा-सा अब पूरा होने को है,
कुछ खामोशी अब गुनगुनाने को है.. 

आम किस्से है सारे इस ज़माने के,
    उस जहां के अलग ही अफ़साने है..    
फलक भी जरा-सा नज़र आता है उसके आगे,
यहां तो पावं रखने के लिए भी जमीन कम है.. 
कुछ अधूरा-सा अब पूरा होने को है,
कुछ खामोशी अब गुनगुनाने को है.. 

 बंदिशे अब दगा दे जाती है,
उलझनों का रिश्ता अब अपना-सा लगता है.. 
मुकम्मल होने को है किसी का साथ,
कश्मकश में न जाने क्यों है मेरे जज़्बात.. 
कुछ अधूरा-सा अब पूरा होने को है,
कुछ खामोशी अब गुनगुनाने को है.. 

6 comments:

  1. कुछ अधूरा पूरा करने की जद्दोजहद 😊👍

    ReplyDelete
  2. बहुत अच्छा लिखती हो तुम....keep writing... God bless u

    ReplyDelete
  3. क्या लिखा है,बहुत बेहतरीन

    ReplyDelete