Friday, 4 January 2019

Journey and Coin!



It was good day for me! There were two reasons first, that I was on travel mode and another I was blessed.. Wait..wait..wait let me start from beginning! Few day ago I was travelling in a train and had to get down after two station. A group of transgender came as usual and asked for money. They too had to get down where I had to. They all settle down near the gate.. One of the passenger asked about their life..like how they survive? How they have been treated? Have they ever meet their family? How they are different?  

Answer by one of them: " भईया अगर कोई कह दे कि ये किसी के हाथ में है तो हम माने.. आप माँ के पेट से नौ  महीने में जन्म लेते हैतो हमें भी उतना ही समय लगता है। पिछले जन्म का बुरा कर्म कह लिजिए या जो भी कोई अपनी मर्जी से नहीं बन जाताआपको अगर उपरवाले ने बनाया है तो हमें भी उसी ने बनाया है। रही बात घरवालों की तो जिसकी वजह से दुनिया में आए हैजिसने पाल पोष कर बड़ा किया हैउसको कैसे भूल जाए। हाँअब साथ में रह तो नहीं सकतेपर कभी-कभी मिल आते है। फोन पर बात हो जाती है।"

Conversation with them was still going on when I stood up, as station was about to come. There were still 15-20 minutes but i had to hear out on their communion. 
While one of them asked about their idiosyncrasy. The question of intimacy, sexual desire and about their offspring. How their generation move on? Whether they get marry or not within their community?  What rituals they follow?    
While one of them were  answering, I was looking at (him/her) face. She/he looked at me too and halt. Asked me to sit on the berth and don't listen to their conversation. Ye sab acchi baat nahi hai, mard sab ko to maza chahiye bas.. tum mat suno ye sab.. hath me kitab li ho ja ke baith ke padho..(as I had a novel in my hand). 
I smiled and said, I'm understanding everything..there is nothing for which either you should feel shy or I have to. 
(Transgender are seen as evolved beings. You appear in ancient texts as bearers of luck and fertility. This sacred idea of the androgyne is developed in the many myths relating to the god Shiva, who is male and female and who, in this dual state, is called Ardhanarishvara.
Ardhanarishvara is the presiding deity of the Ajna or chakra of the third eye, associated with spiritual awakening. This is where we transcend gender in finding the perfect balance between our male and female selves. Hinduism often conceives of each person as in search of our female half if we are male or the male side if we are female, in a quest for integration and transcendence.
There is a transgender presence in the Tantra, as well as in the epic text the Mahabharata, in which the male Shikhandi (born as the female Shikhandini) was pivotal in the great war of Kurukshetra. Elsewhere in the epic tale is the story of the warrior Aravan, who knew he would die in battle but wished to be married first. So the god Krishna assumed female form and married Aravan.
In South India, transgender communities attend a pilgrimage to worship Krishna and Aravan, seeing in the marriage the supreme sacrifice of love because, in the Mahabharata, on the next day the transgender Krishna was widowed. Your community re-enact this legend every year in a colorful ritual that lasts several days. Many transgender myths and legends come alive in such annual pilgrimages, often attended by married heterosexual men who dress as women for the day to gain favor or a boon from the goddess.)
I explained them these all, as I had written an article about transgender while ago. 

They looked at me with admiringly (Nobody ever said like this about us, often we always listen a negative tip about us. Even if people ask about us just for amusement or laughter.)- said.  

Everyone was asking for blessing and coin. 

Now, I was about to reach I hold my trolley and strolled towards gate. One of them came to me and blessed me by putting hand on my head.  

 I really don't know what was that, when I was blessed because neither I touched feed nor I asked for coin.  It was just few words that I spoke to them.  People believe to have their blessing but only one thing came in my mind that i had been blessed by someone with warmth who had never blessed me before. Doesn't matter.  but yes i had been blessed by someone who was older than me...( jug jug jiyo bacchi.. bhagwan tumhe achhi naukari de.. fulo falo.. khoob aage badho! )

Wednesday, 17 October 2018

आदत है..जरुरत है

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यादों के झरोखों से निकल आता है,
मेरी बेतुकी बातों में समा जाता है.. 
जब भी तुझे पिरोहने बैठूं,
रेत की तरह फिसल जाता है.. 

खबरों के खेल में तू हर बार जीत जाता है,
जिरह की चाल में उलझा, हर बात जान लेता है.. 
करती हूं हर बार गुस्ताखियां,
पर कभी न निकाली तुने मुझमें कोई भी खामियां.. 

बातों से किया तुझे हताश, 
दिए जख्म, पर कभी न किया इलाज.. 
पूछा मैंने, "बुरी तो नहीं लगी कोई बात"
हल्की-सी मुस्कान के साथ,तुमने दिया जवाब-
"आदत है..जरुरत है इनकी,  
अच्छी लगती है तुम्हारी हर बात.. 
अधूरी न रह जाए ये दास्तां, बस एक ही है अरदास.. 
हो जाए मुकम्मल ये मोहब्बत और तुम्हारा साथ.."

Wednesday, 26 September 2018

वनस्थली- एक अलग-सी दुनिया...



मन में कोई चाह हो तो दबा कर नहीं रखते
भावनायेहमारे सच्चे मन की वो आवाज़ होती हैं,
 जिसे हर इन्सान कागज़ के टुकड़ो पर नहीं उतार सकता... 
और यही भावनाये कभी-कभी अनुभव का रूप ले लेती हैं ...
जिस पल में जो मिल जाये वह हमारे लिए काफी होता हैं, अपने सपनों को नयी उड़ान देने के लिए और ख्वाहिशों के परिंदों को पर देने के लिए... कुछ यादों.. कुछ बातों को पीछे छोड़, एक नयी सफ़र एक नयी मंजिल को पाने के लिए अपना नया कारवां निकल पड़ा... मन का हो तो अच्छा.. न हो तो और भी अच्छा.. यहां से एक अलग और अंजान सफर का आगाज हुआ.. जब पहली बार अपनी इस दुनिया में कदम रखा था, मुझे सब कुछ बिखरा हुआ सा लगा.. न कोई उम्मीद, न कोई चाह.. बस लगा ये मेरी दुनिया नहीं हो सकती है, तीन साल खत्म हो और मैं चली जाऊं यहां से.. पर आज ये दुनिया मुझे मेरी यादों की खिड़कियों से बहुत दूर दिखाई देती है..  जिंदगी के कुछ बीते पन्नों को पलटूं तो यहां की आबो-हवा आज खुशनुमा लगती हैं... ये दुनिया उतनी अपनी न थी, जितनी आज लगती हैं... ये अनचाहा सफर.. ये पराई दुनिया.. मेरी जिंदगी का अटूट हिस्सा है.. अब हर बात में इसकी याद आती है..


घर से दूर जिन्दगी ने बहुत कुछ सिखाया... गिर के उठना और खुद को संभालना भी आ गया..
जब भी शाम कमरे का दरवाजा खोलती हूं, आस-पास देखती हूं तो घर की बहुत याद आती हैं... वो माँ की बातें..वो लाड..वो प्यार..वो डांट बहुत याद आता हैं... पर वो बचपन कही खो सा गया और हम कब बड़े हो गए पता ही नहीं चला... किसने कहा की बड़े होने के लिए वजह चाहिए..? ये तो समय हैं जो मुझे आज हर बात पर बड़े होने का एहसास दिला जाता हैं.. पहले चीजों को जगह पर रखना कितना भरी लगता था, आज वही रोज का काम बन गया हैं.. समय-समय पर माँ का कहना इतनी देर हो गयी अभी तक खाया भी नहीं, अब इसका भी ख्याल कौन रखे...?
आज जब पीछे मुड़कर देखती हूं तो अपनी उस परछाई को धुंधली पाती हूं... लगता हैं कल ही की तो बात हैं जब पापा हर रात की तरह मुझे अपने पास बैठा जिन्दगी का नया पाठ पढ़ाते थे, मेरे सिर पर हाथ फेर चहरे पर मुस्कराहट के साथ कहते थे.. बहुत देर हो गयी जा कर सो जा
आज समय का पता ही नहीं चलता पर हां, उस स्पर्श को हमेशा महसूस करती हूं.. और जीवन में कुछ करना हैं तो हर कदम पर करुँगी.. क्योंकि वो मेरे हौसलों की उड़ान, मेरे जज्बों की पहचान हैं...

मेरा एक समय पर वहां होना ही मुझे अपने आप में बहुत बड़ी बात मालूम होती हैं.. उस जगह ने मुझे मेरे पापा के प्यार और माँ की ममता से अवगत कराया हैं.. अपने पढ़ाई के साथ-साथ मेरे मन में मेरे सभी शिक्षको के लिए बहुत इज्ज़त हैं.. उनका स्थान मेरे ज़ीवन में सर्वोच्च हैं.. मुझे हर कदम पर उनका साथ मिला, उनके सहयोग और मार्गदर्शन के बिना तो कुछ संभव ही नहीं.. एक अंकुरित बीज को बढ़ने के लिए सही देख रेख की बहुत आवश्यकता होती है, मेरी वही आवश्यकता मेरे शिक्षको ने पूरी की... 
मैं कभी नहीं भूल सकती अपनी इस दुनिया को जिसने मुझे सच में परिवार के मायने सिखाये हैं.. याद करती हूंसे हर वक़्त जब यह सोचती हूं... मैं बड़ी उस जगह हुई थी, जहां मेरा अपना परिवार था ही नहीं.. पर कुछ अंजान रिश्ते मेरे कब अपने बन गए पता ही नहीं चला.. आज मैं इतनी बड़ी हो गयी हूं कि अपनी इस दुनिया को चमक भरी निगाहों से देखती हूं.. उल्लास से अपनाती हूँ यंहा के लोंगो को.... चहरे पर सिकन होने के बाद भी मुस्कुराती हूं.. दिल में कसक हैं पर आज उसे मिटाने की हिम्मत भी रखती हूं..
कैसे भूल सकती हूं इस जगह को जिसने मेरा हाथ तब थामा था, जब मेरे अपने मुझे यंहा छोड़ गए थे.. मेरा हाथ थाम इसने मुझे इस काबिल बनाया कि, मुझे अपनी जिंदगी में कुछ कर गुजरने का हौसला जरुर हैं... आज मैं लोगों को बहुत गर्व और खुशी से बताती हूं अपनी इस दुनिया के बारे में.. जब भी देखते और सुनते है, मेरी इस दुनिया के बारे में तो यही कहते है.. बहुत खूबसूरत हैं तुम्हारी दुनिया और बहुत दिलचस्प हैं वहां की बातें...



PIC CREDIT- ANSHI VERMA 

Saturday, 15 September 2018

हर रोज तुझे मैं लिखती हूं..



हूं खुली किताब जैसी, हर पन्ना सब पढ़ जाते है..
तेरे नाम के पन्ने को कोई पढ़े, उससे पहले पलट देती हूं..
बात एक समय की नहीं है, हर रोज तुझे मैं लिखती हूं..

मुद्दतों के बाद भी, उतनी ही शिद्दत है मेरी दुआओं में..
आखें नम नहीं होती, बस गला भर आता है..
सिर झुकाते ही, तेरे नाम की सदा गूंज जाती है..

तेरी एक-एक बात से मोहब्बत जैसा कुछ है..
यूं ही नहीं हर शब्द मेरे जहम में हर वक्त रहते है..
मोहब्बत जैसा सच में कुछ है,
पर ये मोहब्बत नहीं, उससे भी ऊपर है..

     

Friday, 31 August 2018

बंदिशों से आगे..


गहराते जख्मों की उम्र ही क्या है ?
साथ चल रहे, वक्त का मलहम लगाना बाकी है..
कई पुराने किस्से मिटते जाते है,
मिटे स्याही को अपना अंश बनाना बाकी है..
न जाने चुप क्यों हो जाती है ये जबां,
उन खामोशी में अनकहे अफसाने और भी है..

शाम हसीन है, हिस्सा हूं उस महफिल का,
कई जाम को पीना अभी बाकी है..
खुद को काबिल बनाने की लत में,
तलब के जश्न को मनाना अभी बाकी है..
चुभता है इरादों के ठहराव हर बार,  
ख्वाहिशों के सफर में मोड़ और भी है..

एक मामूली तस्वीर है, अकश् आईना है,
फिके रंग उभरना अभी बाकी है..
पाक मोहब्बत की फलक से,
खुशियां उझालना अभी बाकी है..   
यूं ही नहीं दिल में उठी कसक कहती है,
बंदिशों से आगे, एक जहां और भी है..



Saturday, 25 August 2018

वक्त लगता है...




साधु के भेष में वो दरिंदा बन, उसकी इज़्जत तार-तार कर जाए..
सच्चाई की वीणा बजा वो, झूठ का परचम लहराएं..
हजारों बार कुरेदा जाता है, उसके जख्मों को..
वो चिखती-चिल्लाती है, अदंर से बार-बार रोती है..

दबा दी जाती है उसकी आवाज, क्योंकि सबसे ऊपर है समाज..
इंसाफ के इंतजार में जख्म नहीं भरता, हर बार नया चोट है उभरता..
लहु-लुहान हुई आत्मा, सहम कर रह जाती है..
सुखे हुए आंखों के आंसू, कितना कुछ बोल जाती है..

सब कहते है वक्त नहीं लगेगा, सब ठीक हो जाएगा..
जरा समझना इस बात को ;
वक्त-वक्त की बात में उसे हर वक्त जीना-मरना पड़ता है..
कभी रखकर देखना खुद को उसकी जगह पर ;
नासूर भी कुछ होता है, शायद इसका अंदाजा लग जाए...







Saturday, 11 August 2018

देखा है उन आंखों को चमकते हुए...



टूट कर बिखर गए सपने तो उनका क्या कसूर,
खनक की टीस अश्कों के साथ बह जाती है..

देखा है उन आंखों को चमकते हुए,
जिससे आंसूओं की लकीर खींच जाती है..
लबों से बय़ा कर पाना शायद मुश्किल हो,
उसकी सिसकियां हर सांस का बोझ उठाती है..

मिट्टी का घर बना खिलखिला उठते है,
बचपन का हर रंग उस आशियाने में भरते है..
नंगे पांव में हुए छालो की फिक्र नहीं,
दुनिया की सैर टायर के झूले पर किया करते है,

रोज ख्वाहिशों का जनाज़ा निकलता है,
न जाने कितने अरमान दफ़न हो जाते है..
खुल कर जिंदगी को जीने से पहले ही, 
पेट की आग में बचपन झुलस जाता है..