Wednesday 22 February 2017

"उस वक्त तेरा मैं जिक्र करु"

"उस वक्त तेरा मैं जिक्र करु..."

डुब जाएगा वो समा गुजरते लम्हों के साज में,
पिघल जाएगा वो आलम तेरे होने के एहसास में ...
सहम जाएगी मेरी आह तेरे रु--रु होने की चाह में ,
उस वक्त तेरा मैं जिक्र करु ...
सपनों को तुझसे जोड़ खुद को तेरे लिए खा़स बनाऊं,
ख्वाहिशों को बया कर, उनमें तेरा नाम ढूंढु..
अफ़साना बुन जिंदगी में कभी तुझसे मुखातिब हो जाऊँ .,
जिस लम्हें की चादर को खुद में समेट गुमनाम हवा मुझे छूकर गुजरे,
उस वक्त तेरा मैं जिक्र करु...
महकते फिजाओं का मदहोश आलम, वक्त के धागों में पिरोहे मेरे पाक शब्द ,
वो फलसफा जिसे मैं खुद भी नहीं रोक सकती ,
उस वक्त तेरा मैं जिक्र करु...
है ऐसे जाने कितने पहलू ,   जाने कितने आईने जिसमें तेरी तस्वीर नजर आती है,
पर चाह नहीं होती उसे छूने की, है इस समय में और अंतराल ,
उस वक्त तेरा मैं जिक्र करु...
वाजिभ है तेरा मुझे ढूंढना , यह बात मैं जानती हूं ,
खुद को संभाले लफ़्जों को हर बार नहीं खनकाती हूं ,
तू मेरे हर अंतरे का मुखड़ा है, ये बात खुदा भी जानता हैं ..
तभी तो यूं ही नहीं कहती ;
हां , उस वक्त तेरा मैं जिक्र करुं...

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