Saturday 25 February 2017

वक़्त की आजमाईश

"तू गुजर जायेगा आने वाले पल के आगाज में"

यूं बेरुखी से न देख ऐ! वक़्त मुझे, तू भी गुजर जायेगा आने वाले पल के आगाज में..
हूं महफूज़ मैं तेरी इस बनायी दुनिया में, वो ख़लिश तो होगी पूरी मेरी उस दुनिया में...
नहीं रखती उम्मीद की तू हर बार मुझे खुशियां दे जा, 
तेरी वेदना इतनी भी असहनीय नहीं की मैं सह न सकूँ...
हो जाती हैं मुकम्मल मेरी हर तलाश.. हो जाती है पूरी मेरी हर आरज़ू...
जिस पल में मैं खुद को दर्द से उभरती हूं;
होती हूं खड़ी यह सोच आज यह हैं कल नहीं होगा..
बनती हूं सक्षम खुद को कि,फिर से मिल जाऊं उस दुनिया में,
खुद को जब वहां पाती हूं, तो यही सोचती हूं..
हैं ये साथ जो तेरा मुझको मिला.. हुई थी शिकायते, कुछ था गिला..
न रखती अपनी उस दुनिया से फासला तो,
कहां मिल पता ये सब.. जो अभी तक है मुझे मिला...
यहीं सोच रखती हूं खुद को तुझसे आगे...
जो चाहा वही तो है पाया, और जो खोया वो मेरा कभी था ही नहीं...
है, हंसी इन लबों पर तेरे नाम की..  है,रौशनी इन आँखों में सिर्फ तेरे पहचान की..
कुछ बंदिशे जरुरी होती है; जिंदगी में खुद को क़ामयाब बनाने क लिये...
होती हैं जरुरत उन आजमाईशो की, 
थोड़ी से बेवफ़ाई की; जो वफ़ा से भी बढ़कर है...
रखती हूं तभी तो फासला इस वक़्त से  उन रिश्तों का...
होंगे ये दोनों शामिल एक जगह...जब उन बीते लम्हों में,
मैं मुस्कुराउंगी और ये दोनों बातें करेंगें...

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