बीते सालों में खुद को नहीं पहचान पाउंगी मैं...
जिस आसमान को हमेशा ज़मी से देखा,
एक दिन उसे भी छू जाउंगी मैं...
गिर कर संभालना सीख रही हुं,
वक़्त के साथ जख्मों पर मलहम लगाना सीख जाउंगी मैं...
यूं खुद से अलग हो जाउंगी मैं..
बीते सालों में खुद को नहीं पहचान पाउंगी मैं...
अभी है उदासी तो क्या हुआ,
एक दिन अपनी हंसी का फूल खिलाऊंगी मैं...
बिखरे है अरमान, पर टूटा नहीं है हौसला,
अरमानों को समेट, हौसलों का पंख लगा..
एक नई दुनिया बनाउंगी मैं...
यूं खुद से अलग हो जाउंगी मैं..
बीते सालों में खुद को नहीं पहचान पाउंगी मैं...
मिलता है धोखा हर कदम पर,
गिर जाते है लोग हर बार मेरी नज़रों में..
सबक ले इन सब से,
खुद की नज़रों में सबसे ऊपर उठ जाउंगी मैं..
यूं खुद से अलग हो जाउंगी मैं..
बीते सालों में खुद को नहीं पहचान पाउंगी मैं...
छूट जाता है बहुत का साथ जिंदगी के सफ़र में,
टूट जाते है कई रिश्ते, बीच राह में..
बीते कल को भूला, नए चेहरे को अपनाउंगी मैं...
टूटे रिश्तों को सजोए, नए रिश्ते बनाउंगी मैं...
यूं खुद से अलग हो जाउंगी मैं..
बीते सालों में खुद को नहीं पहचान पाउंगी मैं...
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