Thursday 2 March 2017

सपनों के निशान...



यूं लम्हो को पिरोहने में गुजर जाती है जिंदगी,
मान लो तो कुछ अजीब है इसकी बंदगी...
यहां बनता है फ़लसफ़ा हर कदम पर,
होती है मुश्किलें हर डगर पर...
कुछ ख्वाहिशों का दरिया लेकर निकलो,
कई सपने बेख़ौफ़ देख लो...
टूटे रिश्तों  का अनमोल टुकड़ा समेट,
अश्कों में आने वाले कल का आगाज़ लपेट...
एक दौर निकल जाता है दबे अरमानों को पनपने में,
उम्र गुज़र जाती है कामयाब बनने में...
होते है कुछ सफर ऐसे,
अनदेखा हो हर मोड़ जैसे...
राहे नहीं होती आसान,
हर कदम पर रह जाते है.. सपनों के निशान...
ज़िंदगी के भी रंग रूप का क्या कहना,
मुस्कुराता है जिसके आइने में हर लम्हा..
अब बीते लम्हों  की परछाई नज़र आती है,
दबी आवाज़ों में बहुत कुछ कह जाती  है...
बनकर रह गया है अफ़साना वो गुजरा कल,
शायद, बनता जा रहा है रंगीन हर पल...
ढूंढ लाओ उन पलों को,
समेट लो आज की क़ामयाबी को...
मिला दो इस क़ामयाबी को उस कल से,
चुन लो खुशियां अपने हर पल से...
जोड़ लो उन रिश्तों को आज के सफर से,
और छीन लो वो वक़्त हर मंज़र से...
बना दो इस ज़िंदगी को और भी खुबसूरत ,
ताकि, तुम्हें कभी न कहना पड़े... मुझे इसकी भी थी ज़रूरत...







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